भूत का भय या भय के भूत 1

मन और भय का तो बहुत ही पुराना और अटूट रिश्‍ता है । कोई बात मन में आ जाये तो बस वही बात दिन रात घुमती रहती है । एक ऐसा ही वाक्‍या मेरे साथ हुआ है वो आपको बताता हूं । ये बात कोई 20 साल पुरानी है जब हम सभी दोस्‍त्त साईंस कॉलेज, दुर्ग में पढते थे । दोस्‍तों का पूरा ग्रुप था जिसमें विक्रम सिंह ठाकुर, राजेश बागमार, विनेश वाघेला, महेश टांक, चंद्र प्रकाश गजवानी, अशोक शर्मा, आशिष सोलंकी, प्रकाश ताम्रकार, राम स्‍वरूप सेन, आदि लोग थे । कम्‍बाईन स्‍टडी और कम्‍बाईन मौज मस्‍ती, सब कुछ कम्‍बाईन ही होता था । हम सभी लोगो का एक प्रिय दोस्‍त था, था क्‍या अभी भी है महेश टांक । प्रिय इसलिये था की उस समय केवल उसी के पास मोटर सायकल थी और उसका बहुत बडा फार्म हाउस भी था । जिसमें हम लोग अक्‍सर मौज मस्‍ती करने चले जाते थे । कभी कभी रात को भी वहीं रूक जाते थे । उसका फार्म शहर से बाहर था और गांव से भी काफी अलग था । एक बार उसके घर के सभी लोग कही बाहर गये हुए थे, मौका बहुत अच्‍छा था । हम लोग मस्‍ती और माहौल बनाने उसके फर्म हाउस स्थित घर पर चले गये । सभी लोगों के पास उस समय सायकल थी । बाईक स्‍कूटर का उस समय उतना प्रचलन नहीं था । मस्‍ती के माहौल मे हम सभी दोस्‍त उसके घर पर रूक गये । खाना वगैर खा के हम लोग सभी टी. वी. पर मूवी देखने बैठ गये । तभी दोस्‍तों को सिगरेट की तलब लगी । सिगरेट का जितना कोटा ले गये थे वो सारा खतम हो गया था । घर पर भी सभी छिपाने वाली गुप्‍त जगहों पर तलाश कर ली गई पर कहीं भी सिगरेट नहीं मिली । रात का करिब 10 बज रहे थे । सिगरेट की तलब जोरो की थी और सब दोस्‍तों को अब तो हर हाल में सिगरेट चाहिये ही चाहिये थी । अब कैसे किया जाये । हम लोगो ने महेश से कहा यार किसी को गांव भेज कर मंगा दे गांव फार्म हाउस से थोडा दूर था । महेश ने कहा अबे तुम लोग आ रहे हो करके मैंने सारे लेबर लोगो को छुटटी देदी थी । कोई भी नहीं है जाने वाला और यदि रहता तो भी इतनी रात को यहां से गांव कोई जाने को तैयार नहीं होता । महेश ने ये बात कुछ संदेहास्‍पद तरिके से कह थी । हम लोगो ने जिज्ञासावश पूछा क्‍यों तैयार नहीं होता । महेश ने कुछ छिपाते हुए कहा नहीं बस ऐसे ही, इतनी रात को कौन जाता । हम लोगो ने कहा अबे कौन सी ज्‍यादा रात हो गई है अभी तो 10 ही बजे है । क्‍या बात है, अबे कोई बात है तो बता नहीं तो तू ही जा और सिगरेट लाकर दे । महेश एकदम से इंकार करने लगा मैं तो जाउंगा ही नहीं किसी भी हाल में नहीं जाउंगा । अब हम लोगो का माथा ठनका हम लोगो ने कहा बेटा अब तो तू ही जायेगा तेरे घर आ रहे हैं जब तेरे को मालूम था तो तू पूरी व्‍यवस्‍था करके क्‍यों नहीं रखा । तू गाडी निकाल और जा । महेश एकदम पलट गया और बोला मैं किसी भी सूरत में रात को फार्म हाउस से बाहर नहीं जाने वाला और गाडी भी बॉस ले गये हैं । हम लोगो को कुछ खटका हुआ की ये एकदम नट रहा है जरूर कोई अलग बात है जो ये कह नहीं रहा है । दोस्‍तों ने पूछा अबे बात क्‍या है ठीक से बता क्‍यों एकदम मना कर रहा है । चल तू नहीं जाता तो हममे से कोई चला जाता है । इस पर महेश ने तुरंत मना करते हुए कहा नहीं कोई भी रात को फार्म हाउस से बाहर नहीं जायेगा । मैं किसी को भी रात को यहां से बाहर गांव तक जाने देने का रिस्‍क नहीं ले सकता । हम लोगो ने पूछा क्‍या बात है, कोई डर है, क्‍या कोई बदमाशी है क्‍या । जरा खुल कर बता तो आखिर माजरा क्‍या है । इस पर महेश ने एक डरावना किस्‍सा बताया । उसने कहा की तुम लोग तो जानते हो मेरा फार्म हाउस से गांव दो तीन किलोमीटर दूर है । सुनसान रास्‍ता रहता है पर कोई चोरी उठाईगीरी या लूटपाट का डर नहीं है । तो क्‍या बात है बता हम लोगो ने पूछा । यार असल में कुछ सुनी सुनाई बातें हैं किसी ने देखा तो नहीं है हमारे यहां पर गांव के लोग और हमारे लेबर लोग कुछ कुछ कहते हैं । मैं तुम लोगो को बताउंगा तो शायद तुम लोग हंसों या विश्‍वास ना करो । हम लोग भी अब थोडा सिरियस हो गये की आखिर ऐसी कौन सी बात है जो महेश इतनी भूमिका बना रहा है । हम लोगो ने कहा अबे तू बता तो सही आखिर किस्‍सा क्‍या है । इस पर महेश ने कहना शुरू किया कि जैसा मैं बता रहा था गांव यहां से कुछ दूर है और तुम लोगों ने ध्‍यान दिया होगा की मेरा घर फार्म हाउस की बीच में हैं । फार्म हाउस चारो तरफ से घिरा है और मेन गेट भी यहां घर से काफी दूर है। तुम लोग ने एक बात और ध्‍यान दिया होगा की मेने गेट से जैसे ही बाहर निकलते है कुछ बीस पच्‍चीस कदमों की दूरी पर एक बहुत बडा बरगद का पेड है । हम लोगो को भी याद आया की हां यार है तो । महेश ने आगे एक डरावनी बात बहुत ही डरावने अंदाज में हम लोगो को बताया । उसने कहा की यदि गांव जाना हो तो रास्‍ता उस बरगद के पेड के नीचे से ही होकर है । पेड के नीचे से ही होकर आना जाना पडता है । यहां गांव के लोग और मेरे फार्म के एक दो लेबर लोग भी कहते रहते हैं कि उस बरगद के पेड में कोई रहता है । हालांकि किसी ने देखा नहीं है पर लोग वहां रात में आने जाने में डरते है । अकेला तो कोई भी आता जाता नहीं । यहां कई किस्‍से उसे पेड के मशहुर है । कई लोग कहते हैं की उस पेड के नीचे से गुजरो तो कोई पकड लेता है । महेश के ये कहना था और पूरा माहौल ही बदल गया । पूरे कमरे में सन्‍नाटा हो गया । महेश ने फिर आगे कहा इसी लिये कह रहा था की कोई भी नहीं जायेगा सिगरेट लेने । इस पर मैंने अपनी बहादुरी दिखते हुए कहा नहीं यार काका सिगरेट तो आज पियेंगे ही चाहे कुछ भी हो और तू ये इस बकवास पर पूरी तरह से विश्‍वास कर रहा है । कैसा आदमी है यार तू । अब हम लोगो में आपस में भूत प्रेत के अस्तित्‍व पर बहस छिड गई । दो गुट बन गये एक जो विश्‍वास करते थे उनका दूसरा छोटा गुट जो विश्‍वास नहीं करते थे उनका । मैं व एक दो लोग ही इस छोटे ग्रुप में थे । फिर तो एक से एक भूत प्रेत के किस्‍से सारे मित्र लोग सुनाने लगे । हम लोग अपने तर्को से उनकी बातों का विरोध करते रहे । हम लोगो की बहस कुछ ज्‍यादा ही गरम हो गई तो हम लोगों ने इस टापिक को छोडने का निर्णय लिया और माहौल चेंज करने के लिये फिर सिगरेट पीने की बात सोचने लगे । मसला फिर वहीं पर आकर रूक गया सिगरेट का कोटा तो पहले ही खत्‍म हो चुका था, फिर वही यक्ष प्रश्‍न सामने था कि सिगरेट का जुगाड कैसे किया जाये । मैंने कहा की चलो दो तीन लोग साथ चल कर गांव से सिगरेट ले आते हैं । पर कोई चलने को तैयार नहीं हो रहा था । दूसरा ग्रुप तो जैसे मौका ही देख रहा था उन लोगो ने हमें चुनौती दे दी की अगर भूत प्रेत में विश्‍वास नहीं है तो खुद जाकर सिगरेट क्‍यों नहीं ले आते । बात फिर बढ गई और अब तो चैलेंज जैसा मसला हो गया था । वैसे भी दोस्‍तों को बस मौका मिलना चाहिये किसी की खिंचाई करने का और बरगद का पेड और भूतों के किस्‍से ने हम लोगो की तरिके से खिंचाई करने का अवसर दे दिया । दोस्‍तों ने ऐलान कर दिया की यदि भूत प्रेतों में विश्‍वास नहीं है तो यहां से गांव जाकर सिगरेट लेकर आ जाओ हम भी मान जायेंगे की कोई भूत प्रेत नहीं होते हैं । हमारे ग्रुप में वैसे ही दो तीन लोग थे । मैंने पूछा चलो यार चलकर ले आते है, गांव ज्‍यादा दूर नहीं है । पर जब सच में बरगद के पेड के नीचे से गुजर के जाने की बात आई तो कोई भी तैयार नहीं हुआ । मैं अकेला पड गया और दोस्‍तों को तो जैसे कई दिनों से इसी दिन का इंतजार था । था तो मैं भी सहासी पर जाने क्‍यों अब मुझे भी कुछ डर जैसा लगने लगा । अब दोस्‍तों ने भी मेरा मजा लेने का ठान लिया और मुझे चढाने लगे की अबे तू तो कहीं भी जा सकता है तेरे को तो किसी डर नहीं लगता । जा जाकर सिगरेट ले आ । बात चैलेंज की हो गई थी और कुछ कर दिखाने की भी, नहीं तो साले हरामखोर दोस्‍त जिंदगी भर मुझे खिंचते रहते । सो मैंने कहा ठिक है मैं जाकर लाता हूं पर तुम लोग मुझे फार्म हाउस के गेट तक चलो । तुम लोग वहीं पर रूके रहना, मैं गॉंव जाकर सिगरेट लेकर आ जाता हूं पर तब तक तुम लोग मेरा गेट पर ही इंतजार करते रहना । दोस्‍तों ने कहा ठीक है चलो । हम सब दोस्‍त लोग घर से निकल पडे । मैंने महेश से कहा तेरी मोटर सायकल निकाल इस पर महेश ने कहा यार गाडी तो भावेश भाई लेगये हैं । घर पर कोई गाडी नहीं है ट्रेक्‍टर है चाहे तो ले जा । मुझे ट्रेक्‍टर चलाना तो आता नहीं था सो मैंने मना कर दिया अब सायकल ही बची थी गांव जाने के लिये । मैने अपनी सायकल का हैण्‍डल थाम लिया और सारे दोस्‍त पैदल ही फार्म हाउस के गेट की ओर चल दिये । दो तीन मिनट में ही गेट में पहुंच गये । सारे दोस्‍त वहीं रूक गये । हम लोगो ने सामने देखा सब कुछ सामान्‍य लग रहा था पर बरगद के पेड पर निगाह पडते ही सबके शरीर में झुरझुरी होने लगी, मेरे शरीर में भी हल्‍की सी भय की लहर दौड गई । रात के अंधेरे में बरगद का पेड एक भंयकर साये के रूप में दिखाई पड रहा था । बरगद का पेड कच्‍ची सडक से लगा हुआ था और आसपास कोई दूसरा पेड भी नहीं था । अकेला खडा हुआ बरगद का पेड और उससे लटकती हुई जटाये उसे और भी विकराल रूप प्रदान कर रही थी । उस बरगद के पेड से आसपास का वातावरण भी अजीब और भयावह बन पडा था । बरगद के पेड को छोडकर बाकि सब कुछ ठीकठाक ही लग रहा था । पर मेरे दोस्‍तों को भी कुछ कुछ अनिष्‍ट की आशंका होने लगी । अभी तक तो सबकुछ मजाक, मनोरंजन और खिंचाई का ही प्रोग्राम चल रहा था, वो लोग भी यहां का वातावरण देख कर कुछ सिरियस हो गये । इस माहौल में मेरा अकेले जाना उन लोगो को भी ठिक नहीं लग रहा था । महेश ने भी कहा यार तुम लोग जबरन काका को चढा रहे हो कुछ हो जायेगा तो कौन जवाब देगा । बाकि दोस्‍तों को भी लगा की मजाक मजाक में बात कही बिगड ना जाये । उनमें से कुछ कहने लगे रहने दे यार एक बार सिगरेट नहीं पियेंगे तो मर नहीं जायेंगे । चलो वापस चलते हैं । मैंने देखा अब पासा पलट रहा है तो मैं फिर शेर हो गया । मैंने कहा नहीं अब तो मैं जाउंगा ही चाहे जो भी हो जाये । दोस्‍तों ने भी देखा की साला ज्‍यादा ही उचक रहा है तो वो भी बोले जाने दे साले को । बात फिर जिद पर और डेढ होशियारी पर आकर बिगड गई । दोस्‍तों ने भी कहा ठीक है जा । मैंने कहा जा तो रहा हूं पर वापसी तक तुम लोग यहीं पर मेरे लिये रूके रहना । दोस्‍तों ने कहा ठिक है । मैंने सायकल का हेण्‍डल पकडा और पैदल पैदल गेट से आगे बढने लगा । दस पांच कदम जाकर पीछे देखा तो सारे दोस्‍त गेट पर खडे थे और मेरी ओर ही देख रहे थे । मुझे मुडकर देखते हुए देखा तो बोले अबे अब जल्‍दी जा और जल्‍दी वापस आना हम लोग यहा झक मराते हुऐ तेरे लिये रात भर खडे नहीं रहेंगे । मैंने सायकल को पकडे पकडे तेज चलना शुरू कर दिया । अब मैं बरगद के पेड के एकदम करीब पहुंच गया । बरगद का पेड बहुत ही बडा था और पूरी तरह से कच्‍ची सड़क पर छाया हुआ था । यदि गांव जाना हो और वापस आना हो तो हर हाल में बरगद के नीचे से होकर ही जाना पडता अन्‍य कोई रास्‍ता या उपाय नहीं था । मैंने चलते चलते फिर पलटकर देखा सारे मित्र वहीं खडे थे । मैं तेजी से चलते हुए बरगद के पेड की परिधि में प्रविष्‍ट हुआ । हालांकि कुछ भी असामान्‍य नहीं लगा था मुझे अभी तक लेकिन फिर भी एक अनजाने भय की सिहरन और एक ठण्‍डी लहर पूरे शरीर में दौड गई । मैं अब बरगद के ठीक नीचे पहुंच गया था, बरगद से झूलती हुई जटायें कहीं कहीं काफी नीचे तक आ गई थी और उसे हाथ उठा कर पकडा भी जा सकता था । मैंने उपर पेड की ओर देखा । वहां अंधेरा ही अंधेरा था । फिर भी पेड की आकृति कुछ कुछ स्‍पष्‍ट हो रही थी । हवा चलने से बरगद के पेड के पत्‍तों की सरसराहट एक रहस्‍यमय वातावरण बना रही थी । मैने अपनी चाल तेज की और जितनी जल्‍दी हो सकता था पेड के नीचे से बाहर निकलने लगा । मैं तेजी से पेड से बाहर निकल गया और कुछ दूरी पर जाकर रूका और पीछे फार्म हाउस के गेट की ओर देखा मेरे सारे दोस्‍त अभी भी वहीं पर जमे हुए थे और किसी अप्रत्‍याशित घटना के लिये तैयार थे । पर ना तो कुछ होना था और ना ही कुछ हुआ, शायद उन लोगो को कुछ निराशा जरूर हुई होगी की ये साला सही सलामत निकल गया । खैर मैंने उन लोगो को हाथों से इशारा किया और अब सायकल की सीट पर बैठ गया । मैंने आखिरी बार दोस्‍तों की ओर देखा और फिर गांव की ओर चलने लगा । सायकल को मैंने गति दी और तेज तेज पैडल मार कर गांव की तरफ रवाना हुआ । कुछ दूर जाकर पलटकर देखा तो बस बरगद का साया दिख रहा था पर फार्म हाउस का गेट और दोस्‍तों का कुछ भी पता नही चल रहा था । मै तेजी से सायकल चलाता हुआ बरगद से जल्‍दी से जल्‍दी दूर निकलने लगा । पांच सात मिनट के बाद मैं गांव की सीमा में पहुंच गया । गांव मेरा पहले से देखा हुआ था । इसी गांव से होकर हम लोग महेश के यहां जाते थे और अक्‍सर गांव के पाने ठेलों में कुछ देर रूककर पान गुटका आदि का सेवन जरूर करते थे । गांव में तीन पान ठेले थे । तीनों ही रोड पर ही स्थित थे और पास पास ही थे । मैं उन पान ठेलों के करीब गया तो देखा की सारे ही पानठेले बंद पडे हुए थे । अब ये एक नई मुश्किल आ गई थी । मैं हिम्‍मत करके गांव तो आ गया था, पर अब पानठेले बंद थे तो सिगरेट की व्‍यवस्‍था कैसे होगी । तभी मैंने देखा गांव के सभागार भवन में कुछ लडके बैठे हुए थे । मैं उनके पास गया । मुझे अपने पास आता हुआ था देखकर वो लोग भी खडे हो गये । मैंने उनसे पूछा ये पान ठेला कब बंद हो गया । उनमें से कुछ लडके मुझे महेश के दोस्‍त के रूप में जानते थे, उन्‍ही में से एक ने कहा अरे भैया आप यहां कहॉं रात में घुम रहे है । मैंने कहा अरे यार सिगरेट लेना है, और कोई पान ठेला नहीं है क्‍या । उन लोगो ने कहा - यहां का पान ठेला तो 8 बजे ही बंद हो जाता है । मैंने कहा अरे यार मेरे को सिगरेट तो चाहिये ही कहां रहता है पान ठेला वाला । इस पर उन में से एक ने कहा अभी रामू तो अभी सोया नहीं होगा उसका ठेला खुलवा के दिलवा दो । जो लडके मुझे जानते थे उनसे मैंने कहा कि अरे ये ठिक है तुम ठेला खुलवाकर मुझे सिगरेट दिलवा दो । इस पर दो तीन लडको ने मुझे साथ साथ आने को कहा । उन्‍होनें रामू नामक व्‍यक्ति का पान ठेला जो उसके घर में ही लगा हुआ था के पास ले जाकर रुक गये और रामू को आवाज लगाकर पान ठेला खुलवा लिया । मैंने चार पैकेट सिगरेट और माचिस ले ली । लडकों से भी पान, गुटका, सिगरेट आदि को निमंत्रण दिया पर किसी ने कुछ नहीं लिया । अब सिगरेट तो मेरे पास आ चुकी थी अब मैं वापस फार्म हाउस लौटने की सोचने लगा । मैंने मददगार लडको का शुक्रिया अदा किया और उनसे विदा लेनी चाही । मैंने कहा अब मैं चलता हूं । इस पर पहली बार लडको को ध्‍यान आया और वो मुझसे कुछ सशंकित होते हुए मुझसे पूछ बैठ - इतनी रात को आप यहां कैसे और अभी कहां जा रहे हैं । मैंने कहा कि मैं अपने दोस्‍त महेश के यहां गुजराती बगीचे जा रहा हूं । इतना सुनना था की उन लडको के चेहरे में हवाइंया उडने लगी । उन लोगो ने तुरंत मुझसे पूछा की आप अकेले हो या और भी कोई साथ है । मैंने कहा यहां तो मैं अकेला ही आया हूं । बाकि दोस्‍त महेश के फार्म हाउस में ही रूके हुए हैं । लडको ने कुछ घबराते हुए पूछा की आप फार्म हाउससे अकेले ही यहां गांव आये हो क्‍या । मैंने कहा हां अकेला ही आया हूं । इस पर आश्‍चर्यमिश्रीत भय के साथ उन लोगो ने पूछा आप अकेले फार्म हाउस से निकलकर यहां गांव आये हो तो महेश बाबू ने आपको रोका नहीं क्‍या, इतनी रात में अकेले कैसे आने दिया । मैंने बात को छिपाते हुए कहा तो इसमें डर की क्‍या बात है यार । गांव कोई ज्‍यादा दूर थोडी ही है । लडको ने फिर मुझसे पूछा आप फार्म हाउस से निकलकर यहां आये रास्‍ते में कुछ अजीब बात तो नहीं हुई ना । मैंने कहा नहीं, क्‍यों क्‍या बात है । लडको ने कहा - भैया रात को उधर कोई भी आता जाता नहीं है । लडको ने आगे कहा कि आप जल्‍दी लौट जाओ अभी ज्‍यादा रात नहीं हुई है जितनी जल्‍दी हो सकता है उतनी जल्‍दी बगीचा पहुंच जाओ। मैंने समझ गया की ये लोग ऐसाक्‍यों कह रहे हैं पर मैं जानबूझकर अंजान बनता हुआ उनसे उगलवाने के लिये पूछा -क्‍यों क्‍या बात है तुम लोग ऐसा क्‍यों कह रहे हो । इस पर उनमें से एक ने कहा पता नहीं आपको महेश बाबू ने रात को बाहर निकलने से रोका क्‍यों नहीं । वो तो सब जानते हैं फिर भी रात को आपको अकेल आने दिया। मैंने पूछा क्‍या पता है । लडको ने कहा भैया रात को आपको बगीचे से अकेले निकलना ही नहीं था । अब वापस जाना है तो रूको मत तुरंत ही चले जाओ देर मत करो, । मैंने आग्रहपुर्वक उनसे कहा - अरे यार सस्‍पेंस मत बढाओ सीधे सीधे कहो बात क्‍या है । इस पर उनमें से जो बडा लडका था उसने कहा - भैया बगीचे के गेट से बाहर जो बरगद का पेड है वो ठिक नहीं है । कोई भी गांव वाला रात में उधर नहीं जाता है । मैंने पूछा - क्‍यों ऐसा क्‍या है उस पेड में । क्‍या कोई घटना दुर्घटना हुई है क्‍या । इस पर उसी लडके ने जवाब देते हुए कहा - वैसे तो कोई भयानक घटना नहीं हुई है पर कुछ लोगो के साथ बहुत ही अजीब बात हुई है। जिसके कारण रात कोई भी उधर जाने की हिम्‍मत नहीं करता है । मैंने पूछा क्‍या हुआ था । लडके ने कहा - गांव के कई लोगो कहना है की बरगद के पेडमें कोई भूत, प्रेत या चुडैल है । जब भी कोई उसके नीचे से निकलता है उसे वह तंग करता है । इसपर मैंनेकहा अरेऐसीकोई बात नहीं है अभी तो मैं खुदउसके नीचे से निकलकर आया हूं मुझे तो कुछ नहीं हुआ । लडको ने कहा - अरे भैया आप खुशकिस्‍मत हो जो आप सही सलामत निकल आये हो , हमारे गांव में ही नहीं महेश बाबू के बगीचे के मजदूरों को भी बरगद की चुडेल पकड चुकी है । रात में जो भी उसके नीचे से जाता है उसे वह रोक लेती है । कई लोगों ने वहां भूत देखा है । खुद मेरे चाचा को भी बरगद के भूत ने पकड लिया था । वो तो इतने डर गये थे की पूरे दो महीने बिस्‍तर से हिल नहीं पाये थे । मैंने कहा क्‍या किसी ने भूत को देखा है । उन लोगो ने कहा देखा तो नहीं पर कई लोगो के साथ वहां हादसा हो चुका है । कई बार लोगो को उस पेड के ठीक नीचे भूत ने पकडा है । लोग वहां से जान बचाकर बडी मुश्किल से भागे है । मैंने पूछा क्‍या कोई मर भी चुका है । इस पर लडको ने कहा नहीं मरा तो कोई भी नहीं सभी बडी मुश्किल से जान छुडाकर भाग ही जाते हैं । पर उसके बाद में कई दिनों तक बीमार रहते हैं और डरे सहमे रहते हैं । लडको के पास बरगदके भूत के कई किस्‍से थे । अब मुझे भी कुछ कुछ आशंका होने लगी की इतनी सारी बातें अलग अलग लोगों के साथ घटनाएं पूरी तरह मनगढंत नहीं हो सकती । जरूर कुछ ना कुछ तो अवश्‍य है बरगद के आसपास । लडको ने फिर मुझसे जल्‍दी लौट जाने का आग्रह किया । मैंने भी निश्‍चय किया की कोई बात सच हो ना हो मुझे अब ज्‍यादा देर नहीं करना चाहिये। मुझे फार्म हाउस से निकले हुए आधे घण्‍टे से भी ज्‍यादा समय हो गया था । मेरे दोस्‍त भी कुछ हरामी किस्‍म के थे । वो लडकियों के लिये कभी इंतजार नहीं करते थे तो मेरे लिये क्‍या करेंगे । ज्‍यादा देर तक वो लोग फार्म हाउस के गेट पर नहीं रूकने वाले थे ये मैं अच्‍छी तरहसे जानता था ।

मैंने भी गांव के लडकों से विदा ली और सायकल पर चढकर तेजी से फार्म हाउस की ओर लौटने लगा । मैं तेजी से पैडल मार रहा था ताकी जल्‍दी से जल्‍दी दोस्‍तों तक पहुंच सकूं । जल्‍दी ही गांव के लडके मेरी नजरों से ओझल हो गये । अब मैं फार्म हाउस के अंधेरे और सूनसान रास्‍ते पर बिल्‍कुल अकेला जा रहा था । मेरे मन में वैसे ही दहशत थी और अंधेरा और अकेलेपन का अहसास उस दहशत को और ज्‍यादा बढा रहा था । मुझे जाने क्‍यों अब थोडा थोडा भय लगने लगा था । मैं अपनी पूरी शक्ति लगाकर सायकल को जितना तेज चला सकता था चला रहा था । सात आठ मिनट में ही मुझे दूर बरगद का विशालकाय और भयानक साया दिखाई देने लगा । इस बार बरगद की पहली झलक जैसे ही मिली मेरे सारे शरीर में अंजाने भय की एक ठण्‍डी लहर दौड गई । आते समय तो सारे दोस्‍त मौजूद थे इस लिये मुझे किसी प्रकार का अहसास या डर महसुस नहीं हुआ था । इस बार मुझे जाने क्‍यों घबराहट होने लग रही थी । मैं मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगा की मेरे दोस्‍त फार्म हाउस के गेट पर ही मेरे लिये रूके रहे । जैसे जैसे बरगद का पेड नजदीक आते जा रहा था उसका आकार भी बडता जा रहा था और उसी तरह मेरा डर भी बढता जा रहा था । अब मैं फार्म हाउस के इतने नजदिक पहुंच गया था की यहां से मुझे बरगद का पेड भी साफ साफ दिखाई पड रहा था और फार्म हाउस का गेट भी कुछ कुछ अस्‍पष्‍ट दिखाई पड रहा था । मैंने बहुत ही ध्‍यान लगाकर देखने की कोशिश की की गेट पर कोई खडा है की नहीं पर मुझे कोई भी दिखाई नहीं पड रहा था ।


जारी है फिर पढना ना भूले............

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